Friday, 15 March 2019

जानिए अपनी राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली

Govind Thakur Narsinghpur (M.P.)
जानिए अपनी राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली
वैसे तो हर त्यौहार का अपना एक रंग और महत्व होता है, लेकिन हरे, पीले, लाल, गुलाबी आदि असल रंगों का त्यौहार होली बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। होली के आते ही वातावरण में एक मस्ती का आलम छा जाता है। होली के दिन रंगों के माध्यम से सारी भिन्नताएं मिट जाती हैं और सब बस एक रंग के हो जाते हैं। हर किसी का तन-मन, प्रेम-उल्लास और उमंग के रंगों की फुहार से भर जाता है। आइए जानते हैं अपनी राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली।

कब है होली

होली 2019 तिथि की बात करें तो, इस बार होली 21 मार्च 2019 को है और 20 मार्च 2019 को होलिका दहन है। होलिका दहन और होली के शुभ मुहूर्त का समय 20 मार्च की सुबह 10:44 से शुरू होकर 21 मार्च की शाम 07:12 तक है।

क्यों मनाई जाती है होली

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे। उनकी इस भक्ति से उनके पिता हिरण्यकश्यप नाखुश थे, इसीलिए उनके पिता ने अपने पुत्र को भगवान की भक्ति से हटाने के लिए कई प्रयास किए।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकेगी। एक बार हिरण्यकश्यप ने अपनी ही बहन होलिका के जरिए प्रह्लाद को जिंदा जला देने का आदेश दिया, लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।
जब होलिका प्रह्लाद को जलाने के लिए आग में बैठी, तो वह खुद जल कर मर गई। तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में जाना जाता है और हिन्दू धर्म में होलिका दहन की परंपरा प्रचलित है। होलिका दहन से अगले दिन दुलहंडी (होली) खेला जाता है।

अपनी राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली

मेष – वृश्चिक राशि

इन राशियों का स्वामी मंगल है, जो ऊर्जा का कारक है और वहीं गुस्से का भी। इन दोनों राशि के लोगों के लिए गुलाबी और पीला रंग उत्तम रहेगा।

वृषभ – तुला राशि

इन राशियों का स्वामी शुक्र है और शुभ रंग सिल्वर है, लेकिन इस कलर का उपयोग करना ठीक नहीं रहेगा। इन दोनों राशि के लोग आसमानी और हल्के नीले रंगों का प्रयोग करें और अपने आसपास के माहौल को खुशनुमा बनाएं।

मिथुन – कन्या राशि

इन राशियों का स्वामी बुध है। इन राशि के लोग हल्के हरे रंग, गुलाबी, पीले, नारंगी, आसमानी रंगों का प्रयोग कर इस त्योहार को यादगार बनाएं।

कर्क राशि

इस राशि का स्वामी चन्द्रमा है। इसका रंग सफेद है, इसीलिए आप कोई भी रंग दही में मिलाकर प्रयोग करें। इस प्रकार रंगों भरी होली भी हो जाएगी और दही के प्रयोग से चेहरे पर हानिकारक प्रभाव भी कम होगा। इस राशि के लोग भावुक होते हैं, तो उनके साथ होली की मस्ती सादगी से ही होनी चाहिए।

सिंह राशि

इस राशि का स्वामी सूर्य है, इसीलिए इस राशि के रंग भी बड़े सुहावने हैं, जैसे गुलाबी हल्के हरे, नारंगी, पीले आदि। इन रंगों से आपका प्रभाव भी बढ़ेगा। इस राशि वाले लोग उत्साही होते हैं, तो इनके साथ खूब मस्ती वाली होली खेली जा सकती है।

मकर – कुंभ राशि

इन राशियों का स्वामी शनि है और इनका रंग आसमानी, नीला और फिरोजी होता है। ये राशि के लोग हरे रंग का भी प्रयोग कर सकते हैं। इन राशि वालों के साथ होली खेलना बड़ा ही दिलचस्प होता है।

धनु – मीन राशि

इन राशियों का स्वामी गुरु है, जो संत प्रवृत्ति का कारक है। इनका रंग पीला, नारंगी और गुलाबी हैं। ये राशि वाले लोग सादगीपसंद होते हैं। इनके साथ सलीके से होली खेलकर इनका दिल जीत सकते हैं।

होली पूजन विधि

लकड़ी और कंडों की होली के साथ घास लगाकर होलिका खड़ी करके उसका पूजन करने से पहले हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं। इसके बाद होलिका की तीन परिक्रमा करते हुए नारियल का गोला, गेहूं की बाली तथा चना को भूंज कर इसका प्रसाद सभी को वितरित करें। होली की पूजा करने से घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति होती है।

हाथ में मौली धागा बाँधने से होने वाले लाभ!!

Govind Thakur Narsinghpur (M.P.)
हाथ में मौली धागा बाँधने से होने वाले लाभ!!
अक्सर पूजा-पाठ करते समय पंडित हमारी कलाई पर लाल रंग का घागा या मौली बांधते हैं. लेकिन हम में से बहुत कम लोग जानते है कि पंडित हमारे हाथों में मौली धागा क्यों बांधते है. हिन्दू धर्म में हर धार्मिक कार्यक्रम में घागा बांधने की विधि होती है. घर में जब भी पूजा होती है तो पंडित सभी के हाथों में लाल रंग का धागा बांधते हैं. घागा बांधने का भी एक विशेष विधान होता है. इसे यूं ही जब मन करे तब नहीं बांधना चाहिए. आइए जानें मौली धागे से जुड़े कुछ रहस्य जिन्हें आज विज्ञान ने भी सच साबित किया है.
  • मौली धागा कोई आम धागा नहीं होता हैं. यह विशेष रूप से कच्चे सूत से तैयार किया जाता है. मौली घागा कई रंगों से बना होता है जैसे कि, लालकालापीला, या नारंगी आदि.
  • मौली धागे को हाथ, गले, बाजू और कमर पर बाधा जाता है. घागा बांधने से आपको भगवान ब्रह्माविष्णु व् महेशतथा तीनों देवियों लक्ष्मीपार्वती व् सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
  • घागा बांधने से आप हमेशा बुरी नजर से बचे रहेंगे. मौली धागे को हाथों में बांधने से स्वास्थ्य में भी बरकत होती है.
  • मौली धागे को कलाई पर बांधने से शरीर में वातपित्त तथा कफ के दोष में सामंजस्य बैठता है.
  • घागा बांधने से रक्तचापहृदय रोगमधुमेह और लकवा जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है. शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है, इसलिए मौली धागे को हाथ में बांधने से व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है.
  • शास्त्रों के अनुसार, पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में घागा बांधना चाहिए. विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में घागा बांधने का नियम है. घागा बंधवाते समय जिस हाथ में घागा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए.
  • अगर पर्व के अलावा किसी अन्य दिन घागा बंधवाना चाहते है तो मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है.
  • यह माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का अवतार धारण किया था तो उन्होंने राजा बाली के हाथ में लाल रंग का धागा बाधा था. तभी से ही हाथों में मौली घागा बंधवाया जाता है.

Sunday, 13 January 2019

मकर संक्रांति

नरसिंहपुर गोविंद ठाकुर

त्यौहार के साथ नई शुरूआत हो चुकी है

आपको मकर संक्रांति की ढेर सारी शुभकामनाएं।
भारत में मकर संक्रांति को कृषि पर्व के रूप में देखा जाता है। 

मकर संक्रांति को भारत के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। इसे बड़ी धूमधाम और धार्मित रीति-रिवाजों से मनाया जाता है। आज के मॉडर्न समाज में भी इसे बड़ी ही धूम से मनाया जाता है। इस त्योहार से हिंदुओं के नए साल की शुरुआत होती है।
                         अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग नामों से लोग इसे मनाते हैं। मूलरूप से यह किसानों का त्योहार है। जो अपनी फसल कटने के उत्साह में इसे मनाते हैं। यह सूर्य देवता का त्योहार है। इसी वजह से सूर्य के आने से त्योहार की शुरुआत होती है। इसी दिन से सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। जिसके बाद से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। मकर संक्रांति के बाद शादी, पूजा आदि के मुहूर्त निकलते हैं। इसे नई शुरुआत का त्योहार भी कहा जाता है।

                                                   भारत के हर राज्य में इसे उत्साह और धूम-धाम से मनाया जाता है। दिन में इस त्योहार के मौके पर पतंगें भी उड़ाई जाती हैं। इसी वजह से इसका एक नाम पंतग उड़ाने वाला त्योहार भी है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी इस त्योहार को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। जिसमें से एक है कि संक्रांति (उत्तरायण) के सूर्य का इंतजार करते हुए भीष्म पितामह ने अपनी देह को त्याग दिया था। वहीं क्षगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए भगवान सूर्य का महत्व बताते हैं। इसी वजह से मकर संक्रांति के मौके पर कई जगह भागवत पाठ का आयोजन किया जाता है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में अगर कोई शख्स दान करता है तो उसे अपने दान का सौ गुना फल मिलता है।

                                                    पुराणों में लिखा है कि मकर संक्रांति के दिन नहाना जरूर चाहिए। जो कोई इस दिन तीर्थ स्थल पर जाकर स्नान नहीं करता है वो सात जन्मों के लिए बीमार और गरीब बन जाता है। स्थल पर जाकर जो देवताओं और अपने पितृ के नाम पर दान करते हैं उन्हें वो खुशी के साथ स्वीकार करते हैं।

                                           देवीपुराण के अनुसार अकाल मौत से बचने के लिए इस दिन घर में दुर्गासप्तशी का पाठ करवाना चाहिए। इस साल 14 जनवरी 2019 को सोमवार का दिन पड़ रहा है।
खुशियों के त्यौहार के साथ
नई शुरूआत हो चुकी है

आपको मकर संक्रांति की ढेर सारी शुभकामनाएं। आपको मकर संक्रांति की ढेर सारी शुभकामनाएं।

Wednesday, 26 December 2018

नर्मदा किनारे का बरमान मेला बरमान मेले का महत्व

नर्मदा किनारे का बरमान मेला

बरमान मेले का महत्व



बरमान का मेला मध्य प्रदेश राज्य में नरसिंहपुर ज़िले से करीब 32 किलोमीटर दूर करेली-सागर मार्ग ' रमान' नामक स्थान पर आयोजित होता है। यह प्रसिद्ध मेला नर्मदा नदी के किनारे मकर संक्रांति ' से प्रारम्भ होता है। इसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली है। यहाँ महाकौशल, विंध्य व बुंदेलखंड के अलावा महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश आदि अन्य राज्यों से आए लोग मौजूदगी  दर्ज कराते हैं।

नर्मदा किनारे बरमान के मेले तले विभिन्न पृष्ठभूमियों और रीति-रीवाजसे जुड़े लोगों का संगम करीब एक महीने तक चलता है।नदियों के किनारे पैदा हुई मेला संस्कृति ने कई परंपराओं व मान्यताओं को हमेशा ही पोषित किया है।

नरसिंहपुर जिले का बरमान मेला भी मूल्यों व परंपरा संग सदियों का सफर पूरा कर चुका है।

इस मेले की शुरुआत कब हुई इसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेज तो उपलब्ध नहीं है लेकिन जनश्रुति के आधार पर यह मेला आठ सदियों के पड़ाव पार कर चुका है।

यहाँ आज भी 12वीं सदी की वराह प्रतिमा और रानी दुर्गावती द्वारा ताजमहल की आकृति का बनाया मंदिर मौजूद है।

इसके अलावा, यहाँ स्थित 17वीं शताब्दी का राम-जानकी मंदिर, 18वीं शताब्दी का हाथी दरवाजा, छोटा खजुराहो के रूप में ख्यात सोमेश्वर मंदिर, गरुड़ स्तंभ, कुंड, ब्रह्म कुंड, सतधारा, दीपेश्वर मंदिर, शारदा मंदिर व लक्ष्मीनारायण मंदिर इतिहास का जीवंत दस्तावेज हैं।

यहाँ के कुदरती नजारों के आकर्षण की वजह से ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया बचपन में लाव-लश्कर के साथ यहाँ महीनों रहती थीं।

यहाँ स्थित रानी कोठी सिंधिया घराने ने ही बनवाई है। वहीं गरुड़ स्तंभ को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्थल की मान्यता दी है। हरे रंग का यह पत्थर राजा अशोक के समय का है।

इस पर विष्णु के 24 अवतारों का चित्रांकन है। बरमान मेले का महत्व नर्मदा नदी की वजह से भी है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि ब्रह्मा ने नर्मदा तट के सौंदर्य से अभिभूत होकर यहाँ तप किया, इस वजह से ब्रह्मांड घाट कहलाया। कालांतर में ब्रह्मांड घाट का अपभ्रंश बरमान हो गया।यहाँ के के बारे में कहा जाता है कि वनवास के समय जब यहाँ पांडव ठहरे तो उन्होंने एक कुंड में नर्मदा का जल लाने का प्रयास किया, वह पांडव कुंड बन गया।

पास में ही पांडव गुफाएँ हैं। वहीं सूर्य कुंड व ब्रह्म कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग, चर्म रोग व मिर्गी दूर होती है। बरमान के प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं।

कई तो जीर्णोद्धार की आस में खंडहर में बदलते जा रहे हैं। नदी की श्रृंगार सामग्री रेत व अन्य खनिज संपदा का इतना अधिक दोहन कर दिया गया कि नर्मदा के रेत घाट और सीढ़ी घाट कीचड़ में सन गए हैं। इस स्थल के विकास के लिए कुछ समय से बरमान विकास प्राधिकरण बनाने की माँग भी होती आ रही है।

यहाँ के प्रसिद्ध भुट्टे और गन्ने का स्वाद तो लजीज माना ही जाता है, अब इसकी खेती को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। नर्मदा के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए लोक परंपरा का गीत 'बंबुलिया' सिर्फ नरसिंहपुर जिले में ही गाया जाता है।

यह एक ऐसा सामूहिक गान है जो यहाँ के अलावा नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से लेकर भरूच की खाड़ी तक कहीं भी सुनने को नहीं मिलता। मेले में स्वास्थ्य, कृषि, वन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, महिला एवं बाल विकास, उद्योग, रेशम, मत्स्यपालन समेत कई विभागों की प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र होती है।

हालाँकि इस बार बजट के अभाव में स्वास्थ्य विभाग को छोड़कर अन्य किसी ने प्रदर्शनी नहीं लगाई। 

Monday, 24 December 2018

Narsinghpur Makhanlal Chaturvedi University Center list

Narsinghpur Makhanlal Chaturvedi University Center list


8162AASTHA COMPUTERSDEVENDRA SINGH GUMASTAPGDCA, DCA
8126ADVANCE COURSES OF COMPUTER APPLICATIONSAURAV KHAREPGDCA, DCA
7329GLOBAL IT PLANETER. RUDRESH TIWARIMSC(CS), MSC(CS)LE, BCA, PGDCA, DCA
7074KCE INSTITUTE OF PROFESSIONALSANITA YADAVMSC(CS), BCA, PGDCA, DCA
8161NARSINGH I.T.TECH. COMPUTER OF COLLEGESHRI K.M.S. THAKURBCA, PGDCA
8164PC COMPUTER CENTERSHARAD MALVIYAPGDCA, DCA
8160R.C. EDUCATIONmr .sachin shuklaPGDCA, DCA
8163RAJRADHA ACADEMYSmt Sandhya KothariPGDCA, DCA
8165SARASWATI ACADEMY OF COMPUTER SCIENCE AND APPLICATIONBINDU BALA JAINPGDCA, DCA
8166THAKUR NIRANJAN SINGH INSTITUTE OF COMPUTER SCIENCE AND TECHNOLOGYDIRECTORPGDCA, DCA

नर्मदा जयंती : नर्मदा की महिमा का बखान


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शब्दों में नहीं किया जा सकता मां नर्मदा की महिमा का बखान...

स्कंद पुराण के रेवाखंड में ऋषि मार्केडेयजी ने लिखा है कि नर्मदा के तट पर भगवान नारायण के सभी अवतारों ने आकर मां की स्तुति की। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि संसार में एकमात्र मां नर्मदा नदी ही है जिसकी परिक्रमा सिद्ध, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मानव आदि करते हैं। मां नर्मदा की महिमा का बखान शब्दों में नहीं किया जा सकता।
देव सरिता मां नर्मदा अक्षय पुण्य देने वाली है। श्रद्घा शक्ति और सच्चे मन से मां नर्मदा का जन अर्चन करने से सारी मनोकामना पूरी होती है। सरस्वती नदी में स्नान करने से जो फल तीन दिन में मिलता है, गंगा जी में स्नान से वह एक दिन में ही मिलता है। वही फल मां नर्मदा के दर्शन मात्र से ही मिल जाता है।
सत्युग के आदिकल्प से इस धरा पर जड़, जीव, चैतन्य को आनंदित और पल्लवित करने के लिए शिवतनया का प्रादुर्भाव माघ मास में हुआ था। आदिगुरु शंकराचार्यजी ने नर्मदाष्टक में माता को सर्वतीर्थ नायकम् से संबोधित किया है। अर्थात माता को सभी तीर्थों का अग्रज कहा गया है।
नर्मदा के तटों पर ही संसार में सनातन धर्म की ध्वज पताका लहराने वाले परमहंसी, योगियों ने तप कर संसार में अद्वितीय कार्य किए। अनेक चमत्कार भी परमहंसियों ने किए जिनमें दादा धूनीवाले, दादा ठनठनपालजी महाराज, रामकृष्ण परमहंसजी के गुरु तोतापुरीजी महाराज, गोविंदपादाचार्य के शिष्य आदिगुरु शंकराचार्यजी सहित अन्य विभूतियां शामिल हैं।
आज अमरकंटक से लेकर खंभात की खाड़ी तक के रेवा-प्रवाह पथ में पड़ने वाले सभी ग्रामों व नगरों में उल्लास और उत्सव का दिन है, क्योंकि वह दिन नर्मदा जयंती का होता है।
कहा गया है-
'गंगा कनखले पुण्या, कुरुक्षेत्रे सरस्वती,
ग्रामे वा यदि वारण्ये, पुण्या सर्वत्र नर्मदा।'
- आशय यह कि गंगा कनखल में और सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है किन्तु गांव हो या वन नर्मदा हर जगह पुण्य प्रदायिका महासरिता है। कलकल निनादनी नदी है...हां, नदी मात्र नहीं, वह मां भी है। अद्वितीया, पुण्यतोया, शिव की आनंदविधायिनी, सार्थकनाम्ना स्रोतस्विनी नर्मदा का उजला आंचल इन दिनों मैला हो गया है, जो कि चिंता का विषय है।
'नर्मदाय नमः प्रातः,
नर्मदाय नमो निशि,
नमोस्तु नर्मदे नमः,
त्राहिमाम् विषसर्पतः'
- ..हे मां नर्मदे! मैं तेरा स्मरण प्रातः करता हूं, रात्रि को भी करता हूं, हे मां नर्मदे! तू मुझे सर्प के विष से बचा ले।
दरअसल, भक्तगण नर्मदा माता से सर्प के विष से बचा लेने की प्रार्थना तो मनोयोगपूर्वक करते आए हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि हम सभी जागरूक होकर नर्मदा को प्रदूषण रूपी विष से बचाने मे लिए आगे आएं।
https://www.youtube.com/watch?v=U1mkQsAEhbE
https://www.youtube.com/channel/UCMN3G8CcYx-vCgS4nyzQtKA/videos
https://www.youtube.com/watch?v=dR4MUi6Juis
https://www.youtube.com/watch?v=ZsZaM3e9rw0

Sunday, 23 December 2018

शराब की लत – कारण, लक्षण, नुकसान एवं छोड़ने के उपाय

शराब की लत – कारण, लक्षण, नुकसान एवं छोड़ने के उपाय

शराब की लत – (Alcohol addiction in hindi ) –

शराब की लत एक गम्भीर बीमारी है। जिसने समाज को बहुत खतरनाक तरीके से जकड़ लिया है। शराब की लत के शिकार लोगों को शराब ना मिलने पर वे अत्यंत व्याकुल हो जाते हैं। शराब के नशे के लिय तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। झूठ बोलना, नशे के लिय चोरी करना तथा आपराधिक कार्य करने में भी नही हिचकते हैं।
लोग शराब का सेवन कई प्रकार से करते हैं। कुछ लोग नियंत्रित मात्रा में उचित तरीके से पीते हैं । इनके शराब पीने से किसी को कोई परेशानी भी नही होती है। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगो के लिए शराब जिन्दगी की बहुत बड़ी समस्या बन जाती है शराब पर उनका कोई नियंत्रण नही होता है बल्कि शराब का उनकी जिन्दगी पर पूरा नियंत्रण हो जाता है। इनकी जिन्दगी में शराब ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु बन जाती है। शराब की वजह से उनकी जिन्दगी में अनेक शारीरिक, मानसिक परेशानियाँ खड़ी हो जाती हैं लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद व्यक्ति शराब नही छोड़ पाता है। यही शराब का सबसे बड़ा दुर्गुण है।

जानिए अपनी राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली

Govind Thakur Narsinghpur (M.P.) जानिए अपनी राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली वैसे तो हर त्यौहार का अपना एक रंग और महत्व होता है, लेक...