Wednesday, 26 December 2018

नर्मदा किनारे का बरमान मेला बरमान मेले का महत्व

नर्मदा किनारे का बरमान मेला

बरमान मेले का महत्व



बरमान का मेला मध्य प्रदेश राज्य में नरसिंहपुर ज़िले से करीब 32 किलोमीटर दूर करेली-सागर मार्ग ' रमान' नामक स्थान पर आयोजित होता है। यह प्रसिद्ध मेला नर्मदा नदी के किनारे मकर संक्रांति ' से प्रारम्भ होता है। इसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली है। यहाँ महाकौशल, विंध्य व बुंदेलखंड के अलावा महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश आदि अन्य राज्यों से आए लोग मौजूदगी  दर्ज कराते हैं।

नर्मदा किनारे बरमान के मेले तले विभिन्न पृष्ठभूमियों और रीति-रीवाजसे जुड़े लोगों का संगम करीब एक महीने तक चलता है।नदियों के किनारे पैदा हुई मेला संस्कृति ने कई परंपराओं व मान्यताओं को हमेशा ही पोषित किया है।

नरसिंहपुर जिले का बरमान मेला भी मूल्यों व परंपरा संग सदियों का सफर पूरा कर चुका है।

इस मेले की शुरुआत कब हुई इसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेज तो उपलब्ध नहीं है लेकिन जनश्रुति के आधार पर यह मेला आठ सदियों के पड़ाव पार कर चुका है।

यहाँ आज भी 12वीं सदी की वराह प्रतिमा और रानी दुर्गावती द्वारा ताजमहल की आकृति का बनाया मंदिर मौजूद है।

इसके अलावा, यहाँ स्थित 17वीं शताब्दी का राम-जानकी मंदिर, 18वीं शताब्दी का हाथी दरवाजा, छोटा खजुराहो के रूप में ख्यात सोमेश्वर मंदिर, गरुड़ स्तंभ, कुंड, ब्रह्म कुंड, सतधारा, दीपेश्वर मंदिर, शारदा मंदिर व लक्ष्मीनारायण मंदिर इतिहास का जीवंत दस्तावेज हैं।

यहाँ के कुदरती नजारों के आकर्षण की वजह से ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया बचपन में लाव-लश्कर के साथ यहाँ महीनों रहती थीं।

यहाँ स्थित रानी कोठी सिंधिया घराने ने ही बनवाई है। वहीं गरुड़ स्तंभ को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्थल की मान्यता दी है। हरे रंग का यह पत्थर राजा अशोक के समय का है।

इस पर विष्णु के 24 अवतारों का चित्रांकन है। बरमान मेले का महत्व नर्मदा नदी की वजह से भी है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि ब्रह्मा ने नर्मदा तट के सौंदर्य से अभिभूत होकर यहाँ तप किया, इस वजह से ब्रह्मांड घाट कहलाया। कालांतर में ब्रह्मांड घाट का अपभ्रंश बरमान हो गया।यहाँ के के बारे में कहा जाता है कि वनवास के समय जब यहाँ पांडव ठहरे तो उन्होंने एक कुंड में नर्मदा का जल लाने का प्रयास किया, वह पांडव कुंड बन गया।

पास में ही पांडव गुफाएँ हैं। वहीं सूर्य कुंड व ब्रह्म कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग, चर्म रोग व मिर्गी दूर होती है। बरमान के प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं।

कई तो जीर्णोद्धार की आस में खंडहर में बदलते जा रहे हैं। नदी की श्रृंगार सामग्री रेत व अन्य खनिज संपदा का इतना अधिक दोहन कर दिया गया कि नर्मदा के रेत घाट और सीढ़ी घाट कीचड़ में सन गए हैं। इस स्थल के विकास के लिए कुछ समय से बरमान विकास प्राधिकरण बनाने की माँग भी होती आ रही है।

यहाँ के प्रसिद्ध भुट्टे और गन्ने का स्वाद तो लजीज माना ही जाता है, अब इसकी खेती को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। नर्मदा के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए लोक परंपरा का गीत 'बंबुलिया' सिर्फ नरसिंहपुर जिले में ही गाया जाता है।

यह एक ऐसा सामूहिक गान है जो यहाँ के अलावा नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से लेकर भरूच की खाड़ी तक कहीं भी सुनने को नहीं मिलता। मेले में स्वास्थ्य, कृषि, वन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, महिला एवं बाल विकास, उद्योग, रेशम, मत्स्यपालन समेत कई विभागों की प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र होती है।

हालाँकि इस बार बजट के अभाव में स्वास्थ्य विभाग को छोड़कर अन्य किसी ने प्रदर्शनी नहीं लगाई। 

No comments:

Post a Comment

जानिए अपनी राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली

Govind Thakur Narsinghpur (M.P.) जानिए अपनी राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली वैसे तो हर त्यौहार का अपना एक रंग और महत्व होता है, लेक...