Tuesday, 28 February 2017

सरकारी स्कूल की छात्राओं का YouTube पर धमाल, डाला ऐसा गाना, 81 लाख ने सुना


सरकारी स्कूल में 9वीं, 10वीं क्लास में पढ़ने वाली कुछ छात्राओं ने भगवान कृष्ण पर ऐसा गाना गाया है जिसने पूरे YouTube पर धमाल मचा रखा है। आप भी सुनिए तारीफ किए बिना नहीं रह पाएंगे।
एक कर्णप्रिय गीत इन दिनों यू-ट्यूब और तमाम साइट्स पर छाया हुआ है।
रोहतक के सांघी गांव के डॉ. स्वरूप सिंह गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल की 9वीं, 10वीं और 11वीं की छात्राओं द्वारा गाए गए इस गीत 'बता मेरे यार सुदामा रै.....भाई घणे दिना में आया' को लगभग 81 लाख लोग सुन चुके हैं।
संगीत के साथ पढ़ाई में भी अव्वल ठेठ देहाती परिवेश की बच्चियों विधि, ईशा, शीतल, मनीषा, मुस्कान और रिंकू को सराहना के फोन देश के कोने-कोने से आ रहे हैं। इन बच्चियों ने अपनी कामयाबी का श्रेय माता- पिता और म्यूजिक टीचर सोमेश जांगड़ा को दिया है।
मां ने दिया गीत को लिखकर
विधि ने बताया कि यह भक्ति गीत उसकी मां संतोष ने रिठाल गांव में हुए सत्संग में सुना था और मां ने ही उसे गीत को लिख कर दिया था। बचपन से ही गाने का शौक था। उसने फरवरी 2016 में स्कूल की बाल सभा में गाना गाकर प्रिंसिपल जयपाल दहिया से 500 रुपये का इनाम हासिल किया था। म्यूजिक टीचर सोमेश जांगड़ा ने मेरे यार सुदामा रै--गीत को मार्च में रीमिक्स सांग का रूप देकर रियाज करवाया।
स्कूल की बच्चियों ने 12 अप्रैल 2016 को पहली बार महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के टेगौर सभागार में यह रीमिक्स सांग गाया था। गीत को सुनकर गीता मर्मज्ञ स्वामी ज्ञानानंद ने नैतिक शिक्षा पुस्तक के विमोचन अवसर पर इस गीत को सुनाने का निमंत्रण दिया। गीत सुनकर कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने विधि और साथी बच्चियों को 31000 रुपये का पुरस्कार दिया।
गीत को गाने वाली लड़कियां है अलग-अलग गांव से
गीत की मुख्य गायिका विधि ने बताया कि वह घिलौर गांव से और गीत में साथ देने वाली ईशा रूखी, शीतल, मनीषा और मुस्कान जसिया एवं रिंकू सांघी गांव की रहने वाली है। विधि नौवीं, ईशा, मनीषा, मुस्कान, रिंकू 10वीं और शीतल 11वीं कक्षा में पढ़ रही है।
खेती- बाड़ी करते है छात्राओं के परिजन
विधि और मनीषा ने बताया कि उनके परिवार वाले खेती- बाड़ी करते हैं। इसी से गुजर-बसर चलती है। ईशा के पिता गांव में ही किरयाने की दुकान चलाते हैं। मुस्कान के पिता आर्मी में हैं तो रिकूं के पिता गांव में ही मिस्त्री का काम करते हैं।
स्कूल में करीब 31 गांवों के 1800 बच्चे पढ़ते हैं। तकरीबन सभी बच्चे प्रतिभा के धनी हैं। विधि, रिंकू, ईशा, शीतल, मनीषा और मुस्कान के इस गीत ने सभी का दिल जीत लिया है। छात्राओं ने स्कूल के साथ गांव, माता- पिता और जिले का नाम भी रोशन किया है।
- जयपाल दहिया, प्रिंसिपल, डॉ. स्वरूप सिंह गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल सांघी।

देश भर में सुपरहिट इन बच्चियों की आवाज में वो जादू है, मदहोश हो जाएंगे आप

देश भर में सुपरहिट इन बच्चियों की आवाज में वो जादू है, मदहोश हो जाएंगे आप





देश भर में सुपरहिट हुई इन पांच बच्चियों की आवाज में वो जादू है, सुनकर आप मदहोश हो जाएंगे। इनके एक गाने ने यूट्यूब पर धमाल मचा रखी है। आप भी सुनिए।
इस गीत के बोल हैं, 'बता मेरे यार सुदामा रै.....भाई घणे दिना में आया'।
हरियाणा में रोहतक जिले के सांघी गांव के डॉ. स्वरूप सिंह गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल की 9वीं, 10वीं और 11वीं की छात्राओं ने इस गीत को गाया है। भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती पर गाए गए इस गीत को अब तक कई लाख लोग सुन चुके हैं। गायिकाओं के नाम हैं- विधि, ईशा, शीतल, मनीषा, मुस्कान और रिंकू


संगीत के साथ पढ़ाई में भी अव्वल ठेठ देहाती परिवेश की इन पांचों बच्चियों को पूरा देश सराह रहा है और ये बच्चियां अपनी कामयाबी का श्रेय माता- पिता और म्यूजिक टीचर सोमेश जांगड़ा को देती हैं। मुख्य गायिका विधि बताती हैं कि यह भक्ति गीत उसकी मां संतोष ने रिठाल गांव में हुए सत्संग में सुना था और मां ने ही उसे गीत को लिख कर दिया था। उसने फरवरी 2016 में पहली बार स्कूल की बाल सभा में इसे गाकर इनाम जीता था।
विधि ने बताया कि उसके बाद म्यूजिक टीचर सोमेश जांगड़ा ने मेरे यार सुदामा रै--गीत को मार्च में रीमिक्स सांग का रूप देकर रियाज करवाया। फिर 12 अप्रैल 2016 को पहली बार महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के टैगौर सभागार में यह रीमिक्स गीत गाया। इसे सुनकर गीता मर्मज्ञ स्वामी ज्ञानानंद ने नैतिक शिक्षा पुस्तक के विमोचन अवसर पर इस गीत को सुनाने का निमंत्रण दिया। गीत सुनकर कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने उन्हें 31000 रुपये का पुरस्कार दिया।
विधि ने बताया कि वह घिलौर गांव से और गीत में साथ देने वाली ईशा रूखी, शीतल, मनीषा और मुस्कान जसिया एवं रिंकू सांघी गांव की रहने वाली है। विधि नौवीं, ईशा, मनीषा, मुस्कान, रिंकू 10वीं और शीतल 11वीं कक्षा में पढ़ रही है। उनके परिवार वाले खेती- बाड़ी करते हैं। इसी से गुजर-बसर चलती है। ईशा के पिता गांव में ही किरयाने की दुकान चलाते हैं। मुस्कान के पिता आर्मी में हैं तो रिकूं के पिता गांव में ही मिस्त्री का काम करते हैं।
स्कूल में करीब 31 गांवों के 1800 बच्चे पढ़ते हैं। तकरीबन सभी बच्चे प्रतिभा के धनी हैं। विधि, रिंकू, ईशा, शीतल, मनीषा और मुस्कान के इस गीत ने सभी का दिल जीत लिया है। छात्राओं ने स्कूल के साथ गांव, माता- पिता और जिले का नाम भी रोशन किया है।
- जयपाल दहिया, प्रिंसिपल, डॉ. स्वरूप सिंह गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल सांघी

Saturday, 25 February 2017

History of Jai Bada Dev Mandir Narsinghpur, Madhya Pradesh

इतिहासिक बडा देव मंदिर नरस‍िंंहपुर


मध्‍यप्रदेश के नर‍स‍िं‍हपुर जिले मेंं  लगभग महज 5 किलोमीटर की दूरी पर यह एक मेनावारी गाव में स्‍ि‍थति एक अनोखा मंद‍िर आदिवासीओं जनजात‍ि के देवता बडादेव नाम के भागवान जी का मंद‍िर  हैं यहा के लोगो द्वारा इस मंद‍िर की मन्‍यता यह है कि यहा भागवान बडादेव की पूजा से सभी की मनोकामना पूर्ण हो जाती है यहा के निवास‍िओ के अनुसार यहा पर कई वर्षो पहले जंगल हुआ करता था यहा एक आदिवासी  किसी मरकाम गोत्र के व्‍यक्‍ति द्वारा यहा पर एक व‍िशाल पीपल के पेड के नीचे प्रतिदिन पूजन अर्चन किया जाता था 
उसी व्‍यक्‍‍ित्‍ा द्वारा यहा पर उस पेड के नीचे मंदिर का निर्माण करवाया गया और आज भी प्रत्‍येक शान‍िवार को यहा पूजन क‍िया जाता है यहा पर समय समय पर विशेष पूजाअर्चन भी किया जाता है 






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BATA MERE YAAR SUDAMA RE BY VIDHI NEW EXCLUSIVE VIDEO BHAKTI SONG 2017 ...

Friday, 24 February 2017

Dada Maharaj(Dulhadev) Narsinghpur NH26 hwy

Dulhadev temple narsinghpur


महाशिवरात्रि 2017 पूजा विधि: इन मंत्रों के जाप के साथ इस तरह करें पूजा, पूरी होगी मनोकामना

महाशिवरात्रि का महापर्व आने वाले है और शिवालयों में इसकी तैयारी भी शुरू हो चुकी है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन व्रत करने से और पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं। इस दिन जो भगवान शिव की पूजा करता है, उसे भूत-प्रेत की पीड़ा, ग्रहों से होने वाली दिक्कतें दूर होती है। आइए जानते हैं इस दिन किस तरह से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए और जानिए क्या है पूजा करने की विधि।
महाशिवरात्रि को पूजा करते वक्त सबसे पहले मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। वहीं अगर घर के आस-पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर भी उसे पूजा जा सकता है। वहीं इस दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए और पाठ करना चाहिए। शिव पुराण में महाशिवरात्रि को दिन-रात पूजा के बारे में कहा गया है और चार पहर दिन में शिवालयों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक कर बेलपत्र चढ़ाने से शिव की अनंत कृपा प्राप्त होती है। कई लोग चार पहर की पूजा भी करते हैं, जिसमें बार बार शिव का रुद्राभिषेक करना होता है।
चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र का जाप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती व परिक्रमा करें। अगर आपने व्रत नहीं किया है तो आपको सामान्य पूजा तो अवश्य करनी चाहिए। जिसमें शिवलिंग को पवित्र जल, दूध और मधु से स्‍नान करवाएं। भगवान को बेलपत्र अर्पित करें। इसके बाद धूप बत्‍ती करें। फिर दीपक जलाएं। ऐसा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं। इस दिन इन दो मंत्रों का जाप करें।
शिव वंदना
ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम्।
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम्।।
वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम्।
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवंशंकरम्।।
– महामृत्‍युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माम् मृतात् ।।

महाशिवरात्रि पर भोलेबाबा को खुश करने के लिए चढ़ाएं ये चीजें, पूरे होंगे सभी काम

कल महाशिवरात्रि है और इस दिन हर शिवालय में भक्त भोलेबाबा की पूजा करते हैं और भगवान शंकर से मनोकामनाएं मांगते हैं। कहा जाता है अगर इस दिन सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करे तो भगवान खुश होकर भक्त की मनोकामना पूरी कर देते हैं। इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं कि आपको इस दिन भगवान शिव को क्या अर्पित करना चाहिए और भगवान किस चीज से जल्दी खुश होते हैं।
दूध- आपने देखा होगा कि लोग शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को दूध चढ़ाते हैं और दूध चढ़ाने से भक्त और भक्त के परिवार का स्वास्थ्य ठीक रहता है और घर में समृद्धि बनी रहती है। वहीं दूध में हल्दी मिलाकर चढ़ाने से संतान की प्राप्ति होती है।
बिल्व पत्र- महाशिवरात्रि पर बिल्व पत्र चढ़ाने से भगवान शंकर खुश होते हैं और इससे धन की भी प्राप्ति होती है। इसके लिए भगवान के तीन पत्ते वाला सेट चढ़ाएं और अगर इस वक्त नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च, नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥ का जाप करेंगे तो और भी उत्तम होगा।
सफेद आकड़े के फूल- वैसे तो भगवान को कई तरह के फूल चढ़ाए जाते हैं, लेकिन सफेद आकड़े के फूल का अलग महत्व होता है। ऐसा करने से परिवार में सुख समृद्धि आती है और दुख दूर होते हैं।

Saturday, 11 February 2017

महाशिवरात्रि की पवित्र, प्राचीन और प्रामणिक कथा

महाशिवरात्रि की पवित्र, प्राचीन और प्रामणिक कथा  


पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका।

क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।

शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया।  जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।
जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।

शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' 


शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथमप्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया।

कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे शिकारी!

मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।'  

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई।

तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली, 'हे शिकारी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।

शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे। उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।

हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।  

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।'

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया।
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके।, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।
अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

शिकारी की कथानुसार महादेव तो अनजाने में किए गए व्रत का भी फल दे देते हैं। पर वास्तव में महादेव शिकारी की दया भाव से प्रसन्न हुए। अपने परिवार के कष्ट का ध्यान होते हुए भी शिकारी ने मृग परिवार को जाने दिया। यह करुणा ही वस्तुत: उस शिकारी को उन पण्डित एवं पूजारियों से उत्कृष्ट बना देती है जो कि सिर्फ रात्रि जागरण, उपवास एव दूध, दही, एवं बेल-पत्र आदि द्वारा शिव को प्रसन्न कर लेना चाहते हैं।  

इस कथा में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कथा में 'अनजाने में हुए पूजन' पर विशेष बल दिया गया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव किसी भी प्रकार से किए गए पूजन को स्वीकार कर लेते हैं अथवा भोलेनाथ जाने या अनजाने में हुए पूजन में भेद नहीं कर सकते हैं।  

भारत में धार्मिक स्थल

भारत में धार्मिक स्थल

भारत में धर्म
भारत एक ऐसा देश है जो विविधता में एकता की विचारधारा में विश्वास रखता है। यहां कई धर्म, संस्कृतियां, परंपराएं, जातीय मूल्य और रिवाज़ मौजूद हैं। भारत की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी हिंदू धर्म की है। भारत के अन्य मुख्य धर्म सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और इस्लाम हैं। 

यहां बड़ी संख्या में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च और मठ हैं जिनका विभिन्न धर्मों के लोग दौरा करते हैं। यह वो धार्मिक स्थान हैं जहां भौतिक दुनिया का मेल आध्यात्मिक दुनिया से होता है और मन दिव्य पवित्रता और आध्यात्मिकता से भर जाता है। भारत ‘आस्था की भूमि’ है जिसकी आध्यात्मिक हवा में कर्म, धर्म और क्षमा की खूशबू है। धर्मनिरपेक्ष भारत सर्वधर्म समभाव के दर्शन में विश्वास रखता है जिसका मतलब होता है सभी धर्मों के लिए समानता और आदर। यहां धार्मिक स्थान किसी एक राज्य या क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं बल्कि पूरे देश में फैले हैं। 

धर्म और मान्यता के आधार पर वर्गीकृत कुछ धार्मिक स्थान इस प्रकार हैंः

हिंदू धर्म 

चार धाम: किसी हिंदू के लिए चार धाम यात्रा संपूर्ण तीर्थ है। इसमें चार तीर्थ चार अलग अलग दिशाओं में स्थित हैं।
  • बद्रीनाथ मंदिर - उत्तराखंड में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है।
  • जगन्नाथ मंदिर - ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर स्थित है। यह हर साल होने वाली रथ यात्रा के लिए लोकप्रिय है।
  • रामेश्वरम मंदिर - दक्षिण के रामेश्वरम में स्थित यह भगवान शिव का मंदिर है।
  • द्वारकाधीश मंदिर - गुजरात के द्वारका में स्थित यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है।

हिमालय में उत्तराखंड एक तीर्थयात्रा सर्किट है जिसे छोटा चार धाम कहा जाता है - बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री।

अमरनाथ: जम्मू कश्मीर स्थित पवित्र तीर्थ अमरनाथ, भगवान शिव को समर्पित है। हर साल अमरनाथ गुफा की यात्रा आयोजित होती है जिससे बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा की जा सके।

वैष्णो देवी: जम्मू कश्मीर के त्रिकुटा पर्वत में स्थित यह मंदिर मां वैष्णों को समर्पित है। यहां प्राकृतिक रुप से बनी तीन चट््टानी संरचनाओं, जिन्हें पिंडी कहा जाता है, की पूजा की जाती है। 

कामाख्या मंदिर: असम के गुवाहाटी में स्थित यह सबसे प्राचीन शक्ति पीठ है जो देवी कामाख्या को समर्पित है। इस मंदिर में लगने वाले सालाना अंबूबची मेले में हजारों तंत्र श्रद्धालु आते हैं। 

तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर: तिरुपति स्थित यह मंदिर भगवान वेंकेटेश्वर को समर्पित है जिन्हें बालाजी, श्रीनिवासा और गोविंदा जैसे अलग अलग नामों से भी जाना जाता है। 

सिद्धिविनायक मंदिर: भगवान गणेश का यह मंदिर मुंबई का सबसे लोकप्रिय मंदिर है। आम जनता के अलावा राजनेताओं और बाॅलीवुड हस्तियों के यहां दौरा करने के कारण यह मंदिर बहुत लोकप्रिय है।

शिर्डी सांई मंदिर: महाराष्ट्र के शिर्डी में शिर्डी सांई बाबा का पवित्र स्थल मौजूद है। हर साल यहां बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मंदिर लगभग 200 वर्ग मीटर के इलाके में फैला है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग: गुजरात स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और हिंदू तीर्थ यात्रियों के लिए आध्यामिकता और देवत्य का स्रोत है। देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में यह पहला ज्योतिर्लिंग है।

मीनाक्षी अम्मन मंदिर: मदुरै का मीनाक्षी अम्मन मंदिर देवी पार्वती को समर्पित है। देवी पार्वती को मीनाक्षी के नाम से भी जाना जाता है।

ब्रह्मा मंदिर: पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर दुनिया का एकमात्र मंदिर है जो भगवान ब्रह्मा को समर्पित है। माना जाता है कि यह मंदिर करीब 2000 साल पुराना है।

सबरीमला श्री धर्म संस्था मंदिर: भगवान अयप्पा का यह मंदिर केरल का सबसे लोकप्रिय मंदिर है। यह भारत का एकमात्र मंदिर है जिसमें सभी धर्मों और आस्था के लोगों को जाने की इजाज़त है।

कुमारी अम्मन मंदिर: यह कन्याकुमारी का सबसे लोकप्रिय मंदिर है जो देवी कुमारी अम्मन, जिन्हें कुमारी भगवती अम्मन भी कहा जाता है को समर्पित है। यह भारत के शक्ति पीठों में से एक है और भगवान परशुराम द्वारा बनाया गया पहला दुर्गा मंदिर है। 

शक्ति पीठ: भारत मेें 50 से ज्यादा शक्ति पीठ हैं। यह सब देवी सती या शक्ति को समर्पित हैं। कुछ शक्ति पीठ हैं - हिमाचल प्रदेश के चिंतपुर्णी में चिन्नामस्तिका शक्ति पीठ, महाराष्ट्र के कोल्हापुर में महालक्ष्मी मंदिर, तमिलनाडु के कांचीपुरम में कामाक्षी मंदिर, कर्नाटक के मैसूर में चामुंडेश्वरी मंदिर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विशालाक्षी मंदिर, हिमाचल प्रदेश में ज्वालाजी मंदिर, पश्चिम बंगाल के नंदीपुर में नंदीकेश्वर शक्ति पीठ, ओडिशा के पुरी में विमला मंदिर, मध्य प्रदेश के अमरकंटक में कमलादेवी शक्ति पीठ और अन्य।

मथुरा-वृन्दावन: भगवान कृष्ण मथुरा में पैदा हुए थे और उनका बचपन वृन्दावन में बीता था। इन जगहों में भगवान कृष्ण और उनकी प्रेयसी राधा को समर्पित कई मंदिर हैं। 

हरिद्वार: उत्तराखंड में स्थित यह स्थान कैलाश पर्वत की तीर्थयात्रा शुरु करने के लिए आदर्श स्थान माना जाता है। 

वाराणसी: काशी के नाम से भी जाना जाने वाला यह भारत का सबसे पवित्र शहर है। इस शहर के घाट और मंदिरों की ओर बड़ी संख्या में हिंदू भक्त आकर्षित होते हैं। 

इन सब जगहों के अलावा भारत में बड़ी संख्या में मंदिर और धार्मिक स्थान हैं, जैसे इलाहाबाद, उज्जैन, नासिक, ऋषिकेश, गया, मदुरै, महाबलेश्वर आदि, और भी कई पवित्र स्थान हैं जिनका हिंदुओं में बहुत महत्व है। 

इस्लाम

हजरतबल: हजरतबल श्रीनगर में स्थित है और यहां पैगंबर मोहम्मद के अवशेष होने के कारण बहुत लोकप्रिय है। भक्तों को इन्हें देखने की इजाज़त साल में एक बार होती है और इस दौरान बड़ी संख्या में तीर्थयात्री यहां आते हैं। 

जामा मस्जिद: मुगल बादशाह शाह जहां की बनवाई हुई यह मस्जिद पुरानी दिल्ली में स्थित है। यहां मोहम्मद के कुछ अवशेष मौजूद हैं और यहां एक साथ हजारों भक्त एकत्रित हो सकते हैं। 

चेरामन जुमा मस्जिद: केरल स्थित यह मस्जिद भारत की पहली मस्जिद मानी जाती है। पैगंबर मोहम्मद के पहले अनुयायी मलिक इब्न दिनार ने इसे 629 ईस्वी में बनवाया था। 

ताज-उल-मस्जिद: मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थित यह मस्जिद एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद है। इसके नाम का मतलब है सभी मस्जिदों के बीच ताज।

मक्का मस्जिद: हैदराबाद की यह मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। इसका निर्माण उन ईंटों से हुआ है जिसकी मिट््टी पवित्र मक्का से लाई गई थी।

भारत में बड़ी संख्या में मस्जिद और दरगाह हैं। भारत की कुछ प्रमुख मस्जिदों में लखनउ की आसफी मस्जिद, हैदराबाद की चार मीनार, दिल्ली की मोती मस्जिद, अलीगढ़ की सर सैयद मस्जिद, कोलकाता की टीपू सुल्तान शाह और अन्य कई हैं। सिख धर्म

स्वर्ण मंदिर: अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को हरमिंदर साहिब भी कहा जाता है। यह सिखों का सबसे प्रमुख तीर्थ माना जाता है। इस मंदिर के चार दरवाज़े इस बात का प्रतीेक हैं कि यह सभी धर्म और आस्था के लोगों के लिए खुला है। 

आनंदपुर साहिब: पंजाब के रुपनगर जिले का भाग यह शहर पवित्र शहर के तौर पर जाना जाता है। तख्त श्री केशवगढ़ साहिब आनंदपुर साहिब का मुख्य गुरुद्वारा और प्रमुख आकर्षण है। 

दमदमा साहिब: पंजाब के भटिंडा स्थित यह ‘टेम्पोरल प्राधिकरण’ के बैठने का स्थान है और सिखों का सबसे पूजनीय तख्त है।

पटना साहिब: तख्त पटना साहिब को तख्त श्री हरमिंदरजी भी कहा जाता है और बिहार के पटना स्थित यह जगह दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह का जन्मस्थान हैै।

हजूर साहिब: तख्त सचखंड श्री हजूर अबचलनगर साहिब महाराष्ट्र के नांदेड़ में स्थित है और सिखों के पांच तख्तों में से एक है। यह सबसे बड़े टेम्पोरल प्राधिकरणों में से एक है और इस जगह गुरु गोबिंद सिंह जी ने अंतिम सांस ली थी। 

हेमकुंड साहिब: उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित यह जगह दसवें सिख गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह को समर्पित है। 

गुरुद्वारा पावंटा साहिब: पावंटा साहिब गुरुद्वारा दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को समर्पित है और हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है। यहां गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा लिखी किताब दसम ग्रंथ रखे होने के कारण इसका बहुत महत्व है।

बंगला साहिब गुरुद्वारा: मध्य दिल्ली स्थित यह जगह पहले राजा जय सिंह की थी जिसे बाद में गुरु हरकिशन जी की याद में एक गुरुद्वारे में तब्दील कर दिया गया। 

रकब गंज गुरुद्वारा: दिल्ली स्थित यह गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर को श्रद्धांजलि है जिन्हें मुगलों द्वारा मारे जाने के बाद बिना शीश के उनके शरीर का यहां अंतिम संस्कार किया गया था। 

सीस गंज गुरुद्वारा: यह दिल्ली का सबसे पुराना और ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। यह गुरु तेग बहादुर और उनके अनुयायियों को समर्पित है जिन्हें चांदनी चैक में मुगलों ने मौत के घाट उतारा था। 

ईसाई धर्म

बोम जीसस का बेसिलिका: गोवा स्थित यह चर्च भारत का पहला चर्च है जिसे माइनर बेसिलिका का पद मिला और यह सेंट फ्रांसिस जेवियर की कब्र के लिए भी जाना जाता है।

सेंट केजटन चर्च: गोवा की इस चर्च का स्वरुप रोम की सेंट पीटर चर्च जैसा है। यह चर्च ईसाई वास्तुकला और नवचेतना का उदाहरण है।

सेंट फ्रांसिस आॅफ असीसी: गोवा स्थित यह स्थान पहले आर्कबिशप का महल था और से-कैथेड्रल को सेंट फ्रांसिस आॅफ असीसी चर्च और काॅन्वेंट से जोड़ता है। यह पहले एक कान्वेंट था और बाद में 1521 में फ्रांसिस फ्रिआर के लिए चर्च में तब्दील कर दिया गया।

सांताक्रूज बेसिलिका: केरल की इस चर्च को मूलतः पुर्तगालियों ने बनाया था और बाद में पोप पाॅल चतुर्थ ने इसे 1558 में कैथेड्रल का दर्जा दिया। विध्वंस और पुनर्निमाण के अनुभवों के बाद आखिरकार 1984 में इसे पोप जाॅन पाॅल ने बेसिलिका घोषित किया।

लिटिल माउंट चर्च: श्राइन आॅफ आवर लेडी आॅफ गुड हेल्थ चैन्नई की एक लोकप्रिय चर्च है और यह देश की सबसे पुरानी चर्चों में से एक है। 

कैथेड्रल चर्च आॅफ सेंट थाॅमस: यह मुंबई शहर की पहली एंग्लिकन चर्च है। इसकी नींव 1672 में रखी गई थी और 1718 में इसका निर्माण पूरा हुआ, जिसके बाद इसे आम जनता के लिए खोला गया।

क्राइस्ट चर्च और सेंट माइकल कैथेड्रल: हिमाचल प्रदेश के शिमला के लोकप्रिय माॅल रोड पर स्थित यह चर्च उत्तर भारत का दूसरा सबसे पुराना चर्च माना जाता है। 

सेकर्ड हार्ट कैथेड्रल: यह रोमन कैथोलिक कैथेड्रल दिल्ली की सबसे पुरानी चर्चों में से एक है। यहां पूरा साल ईसाई धार्मिक सेवाएं आयोजित होती हैं।

कानपुर मेमोरियल चर्च: इसे मूलतः आॅल साॅल्स कैथेड्रल कहा जाता है और यह 1875 में उन अंग्रेजों की याद में बना था जिन्होंने 1857 के युद्ध मेें अपनी जान गवां दी थी।

भारत की अन्य लोकप्रिय चर्चों में सेंट एंड्रयू, सेंट फ्रांसिस जेवियर चर्च, कैथेड्रल चर्च, सेंट मोनिका चर्च और कैथेड्रल, द चैपल आॅफ द लेडी आॅफ द माउंट और मेटर देई चर्च हैं। यह सभी चर्च गोवा में स्थित हैं। गोवा के बाहर कुछ मशहूर चर्चों में सरधाना की कैथोलिक चर्च, गोरखपुर की सेंट जोसफ रोमन चर्च, पल्लसुर की सेंट थाॅमस श्राइन, कोचीन की सेंट फ्रांसिस चर्च, केरल की परुमला पल्ली, कोचीन की सेंटा क्रूज बेसिलिका आदि अन्य हैं। 

बौद्ध धर्म

बोध गया: यह बिहार में बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है और माना जाता है कि गौतम बुद्ध को यहां बोधि वृक्ष के नीचे आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई थी इसलिए इसका बहुत महत्व है। 

सारनाथ: उत्तर प्रदेश के सारनाथ में यह वो जगह है जहां बुद्ध ने धर्म पर अपना पहला पाठ सिखाया था।

कुशीनगर: उत्तर प्रदेश की इस जगह का बहुत धार्मिक महत्व है क्योंकि यहां गौतम बुद्ध ने अंतिम सांस ली थी और मृत्यु के बाद परिनिर्वाण पाया था।

जैन धर्म

बिहार का वैशाली, अंतिम तीर्थांकर महावीर का जन्मस्थान है और इसलिए यह जैन लोगों के लिए बहुत खास धार्मिक स्थान है। इस जगह का धार्मिक महत्व बौद्ध धर्म के लोगों के लिए भी है क्योंकि गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश यहां दिया था।

पावापुरी: बिहार का यह एक पवित्र स्थान है जहां भगवान महावीर ने मो़क्ष प्राप्त किया था। इन जगहों के अलावा देश में कई और मशहूर जैन मंदिर हैं। कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैंः

गोमतेश्वर मंदिर: भगवान गोमतेश्वर या महान बाहुबली कर्नाटक के श्रवणबेलागोला में स्थित है और शहर के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। 

सोनागिरी मंदिर: मध्य प्रदेश के सोनागिरी में मुख्य मंदिर के अलावा कई दिगंबर जैन मंदिर हैं जो कि आसपास बने हैं। यह एक पहाड़ पर स्थित सफेद रंग के मंदिर हैं।

लाल मंदिर: नई दिल्ली के चांदनी चैक में स्थित श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर भगवान पाश्र्वनाथ को समर्पित है।

पालिताना मंदिर: श्वेतांबर जैन को समर्पित यह मंदिर गुजरात के भावनगर में स्थित है, यहां शत्रुंजय पर्वत पर हजारों की संख्या में मंदिर हैं। जैन लोग मानते हैं कि निवार्ण पाने के लिए जीवन में कम से कम एक बार इन मंदिरों के दर्शन जरुर करने चाहिये।

बावनगजा मंदिर: यह पहले तीर्थांकर आदिनाथ की दुनिया में सबसे बड़ी प्रतिमा के लिए जाना जाता है और यह मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में स्थित है।

यहूदी धर्म

यहूदियों के धार्मिक स्थान तीन विभिन्न यहूदी समूहों द्वारा बनाए और बांटे गए हैं। 

कोचीन सिनगाग: कोचीन का परदेसी सिनगाग राष्ट्रमंडल देशों का सबसे पुराना सिनगाग है। इसे कोचीन के यहूदी समुदाय या मालाबार येहूदन ने 1567 में बनवाया था।

बेने इसराइल सिनगाग: 18वीं सदी के अंत से 19वीं सदी की शुरुआत में बेने इजराइल यहूदी अहमदाबाद, मुंबई और पुणे में बस गए और देश के ज्यादातर सिनगाग बनाए। बेने इजराइल के कुछ सिनगाग में मुंबई का शार हाराचमिम, अहमदाबाद का मेगन अब्राहिम और महाराष्ट्र के अलीबाग और पनवेल और कोंकण के कई अन्य हैं।

बगदादी सिनगाग: भारत में बगदादी सिनगाग के निर्माण में इराकी यहूदियों के वंशजों ससून परिवार ने सहयोग दिया था। यह सिनगाग ज्यादातर पवित्र आर्क होते हैं जहां सेफर तोराह जमा होते हैं। भारत के कुछ बगदादी सिनगाग में महाराष्ट्र के भायकला का मेगन डेविड सिनगाग, मुंबई का केनसेथ एलियाहो सिनगाग और पुणे का ओहेल डेविड सिनगाग हैं।

सूफीवाद

मोइनुद््दीन चिश्ती की दरगाह: अजमेर शरीफ के नाम से लोकप्रिय इस दरगाह के लिए माना जाता है कि यहां मांगी गई कोई दुआ खाली नहीं जाती। मशहूर संत मोइनुद््दीन चिश्ती की कब्र इस जगह है। इस स्थान पर सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि हर धर्म के लोग यहां प्रार्थना करते हैं। 

हाजी अली दरगाह: मुंबई में छोटे से टापू पर स्थित यह शहर का एक लैंडमार्क है। इस दरगाह में शाह बुखारी और सैयद पीर हाजी की कब्र है। हर साल यहां हजारों श्रद्धालु चादर चढ़ाने और प्रार्थना करने आते हैं। 

निजामुद््दीन दरगाह: दिल्ली में स्थित यह सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है। 

चिराग-ए-दिल्ली दरगाह: दिल्ली स्थित इस दरगाह में सूफी संत हजरत नसीरुद््दीन मेहमूद चिराग देहलवी की कब्र है जिन्हें रौशन चिराग-ए-दिल्ली का शीर्षक मिला था।

पिरान कलियार शरीफ: रुड़की से कुछ किलोमीटर दूर हरिद्वार के कलियार गांव में स्थित यह दरगाह सूफी संत अलाउद््दीन अली अहमद सबीर कलियारी की है। वो चिश्ती क्रम की सबरियान शाखा के पहले संत थे।

हजरत बू-ली शाह कलंदर: हरियाणा के पानीपत में यह दरगाह सूफी संत शेख शराफुद््दीन बू अली कलंदर की है और इसे मुगल जनरल महाबत खान ने बनवाया था। 

तरकीन दरगाह: अजमेर के ख्वाजा मोइनुद््दीन चिश्ती के अनुयायी ख्वाजा हमीदुद्दीन नागौरी को यह समर्पित है। इस दरगाह का सबसे बड़ा आकर्षण एक बिना पत्तों का पेड़ है जिसने पूरी मजार को ढंक रखा है। 

सूफी दरगाहें या धार्मिक स्थान सबके लिए खुले रहते हैं। यहां सभी धर्मों के लोग बड़ी तादाद में आते हैं।

पारसी धर्म
पारसी धर्म के पूजा स्थलों को फायर टेंपल कहा जाता है। भारत में करीब 150 फायर टेंपल हैं, जिनमें से ज्यादातर मुंबई और गुजरात मेें हैं। भारत के कुछ मशहूर फायर टेंपल उदवाडा का इरानशाह अतश बेहरम, सूरत का वकील अतश बेहरम, हैदराबाद का मानकजी नुसरवंजी चिनाॅय फायर टेंपल, मुंबई का सेठ होरमसजी बोमनजी वाडिया, नवसारी का मोबेद मिनोचेरहोमजी अदरायन और अन्य कई हैं। 

बहाई
लोटस टेंपल: पूजा के लिए यह बहाई हाउस 1986 में दिल्ली में बना था और यह अपने फूल जैसे आकार के लिए जाना जाता है। बड़ी संख्या में अलग अलग धर्म और आस्था के लोग हर दिन इस मंदिर का दौरा करते हैं। 

भारत में धर्म

भारत में धर्म

भारत में धर्म
भारत एक विविध धर्मों वाला देश है जिसकी विशेषता उसकी विभिन्न धार्मिक प्रथाएं और विश्वास है। भारत की इस आध्यात्मिक भूमि ने कई धर्मों को जन्म दिया है, जैसे हिंदू धर्म, सिख धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म। यह धर्म मिलकर उपसमूह बनाते हैं जिन्हें पूर्वी धर्मों के रुप में जाना जाता है। भारत के लोगों को धर्मों पर बहुत ज्यादा विश्वास है और वो मानते हैं कि यह उनके जीवन को एक अर्थ और उद्देश्य देते हैं। यहां पर धर्म सिर्फ मान्यताओं तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि इनमें नैतिकता, रिवाज़, संस्कार, जीवन दर्शन के अलावा और भी बहुत कुछ है। आज के समय में भारत में विविध धर्मों का पालन किया जाता है। 


हिंदू धर्म
भारत की आबादी का ज्यादातर हिस्सा हिंदू धर्म का पालन करता है जो इस देश का सबसे प्राचीन धर्म है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 80 प्रतिशत भारतीय हिंदू धर्म का पालन करते हैं। इस धर्म को मानने वाले इसे सनातन धर्म भी कहते हैं। इस नाम को महात्मा गांधी ने लोकप्रिय बनाया था। हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ रामायण और भगवद गीता हैं। हिंदू लोग वेदों और उनपिषदों के सिद्धांतों का अभ्यास करते हैं। उनके पूजा स्थल को मंदिर या देवस्थान कहा जाता है। ये लोग मूर्तियों की पूजा करते हैं जिसे भगवान का प्रतिबिंब माना जाता है। लेकिन वह हिंदू जो आर्य समाज के हैं, वो मूर्ति पूजा नहीं करते हैं। हिंदू धर्म में प्रतीकों की एक व्यवस्था है जैसे स्वास्तिक का चिन्ह शुभ का प्रतीक है और ओम परम ब्रम्ह का प्रतीक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार कई हिंदू त्यौहार हैं, जैसे दीपावली, होली, बिहू, गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा और अन्य जो देश में मनाए जाते हैं। 



इस्लाम 
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 13 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है और इसका पालन करने वालों को मुसलमान कहा जाता है। यह उप वर्गों में बंटा है जिनमें सबसे प्रसिद्ध शिया और सुन्नी हैं। मुस्लिमों की पवित्र पुस्तक कुरान है और ये पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं का पालन करते हैं। इस्लाम में मक्का में की जाने वाली सालाना तीर्थयात्रा हज है जो शारीरिक और आर्थिक रुप से सक्षम हर मुस्लिम को जीवन में एक बार करनी होती है। भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख इस्लामी त्यौहारों में ईद-उल-फितर, ईद-उल-जुहा और मुहर्रम हैं। 



सिख धर्म
गुरु नानक ने 15 वीं सदी में पंजाब क्षेत्र में सिख धर्म की स्थापना की थी। सिखों की पवित्र किताब गुरु ग्रंथ साहिब है जो गुरु के लेखन का संग्रह है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी का 2 प्रतिशत हिस्सा सिर्ख धर्म के लोगों का है। सिख धर्म में कोई विशेष त्यौहार नहीं होते हैं लेकिन कुछ आमतौर पर मनाए जाते हैं, जैसे गुरुओं का जन्मदिन या शहादत दिवस। गुरुपूरब, बैसाखी, नगर कीर्तन, होला मौहल्ला आदि कुछ त्यौहार हैं जो सिख लोग मनाते हैं। सिखों के धार्मिक विश्वासों में उपवास या तीर्थ करना शामिल नहीं है। भारत में ज्यादातर सिख पंजाब में रहते हैं और इनके समुदाय बड़ी संख्या में पड़ोसी राज्यों में रहते हैं।



बौद्ध धर्म
भारत में बौद्ध धर्म की स्थापना सिद्धार्थ गौतम ने की थी जिन्हें ‘बुद्ध’ भी कहा जाता है। बौद्ध लोग भारत की आबादी का सिर्फ 1 प्रतिशत हैं। ये लोग संसार, कर्म और पुनर्जन्म मेें विश्वास रखते हैं और बुद्ध की शिक्षा का पालन करते हैं। बौद्ध भक्ति प्रथाओं में तीर्थयात्रा, झुकना और जप करना और प्रसाद शामिल हैं। बुद्ध का जन्मदिन जिसे वेसक भी कहते हैं, असालह पूजा दिवस, मघा पूजा दिवस और लाॅय रोथोंग बौद्ध धर्म के कुछ त्यौहार हैैं।



जैन धर्म
माना जाता है कि जैन धर्म भारत में 7-5वीं सदी के बीच शुरु हुआ और इसकी स्थापना महावीर ने की थी। यह धर्म भगवान के नहीं बल्कि स्वयं के धर्मशास्त्र में विश्वास रखता है। यह अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांतावाद में विश्वास रखता है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बहुत कम संख्या में लोग जैन धर्म का पालन करते हैं। जैनियों के इतिहास के अनुसार इस धर्म के कुल 24 प्रचारक थे जिन्हें तीर्थांकर कहा जाता है। इनमें ऋषभ सबसे पहले और महावीर सबसे अंतिम थे। इस धर्म के अनुयायी पांच प्रतिज्ञाएं करते हैं जिनमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रहम्चर्य और अपरिग्रह शामिल हैं। महावीर जयंती, पर्यूषण पर्व, दीपावली और मौन अगियारा जैन धर्म के कुछ त्यौहार हैं। 



ईसाई धर्म
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार भारत में ईसाई धर्म लगभग 2000 साल पहले आया। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 2.3 प्रतिशत ईसाई धर्म से है। ईसाई आबादी पूरे देश में पाई जाती है, लेकिन ज्यादातर दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर और कोंकण तट के इलाकों में रहती है। ईसाई लोग ईसा मसीह में विश्वास रखते हैं और उन्हीं की पूजा करते हैं। उन्हें वे मानवता का रक्षक और परमेश्वर का पुत्र मानते हैं। ईसाइसों का मुख्य त्यौहार क्रिसमस है। गुड फ्राइडे, आॅल साॅल्स डे और ईस्टर कुछ ऐसे त्यौहार हैं, जो इस धर्म के लोग भारत में मनाते हैं। 



अन्य
यहूदी और पारसी धर्म के लोग भी देश में बहुत कम संख्या में हैं। यहूदी धर्म के अनुसार भगवान और यहूदियों के बीच में एक पवित्र रिश्ता है। देश के अल्पसंख्यक समुदायों में से एक पारसी धर्म के लोग मानते है कि मनुष्य भगवान का सहायक होता है। इस धर्म का पालन करने वालों को पारसी कहा जाता है और यहूदी धर्म का पालन करने वालों को यहूदी कहा जाता है।



हालांकि भारत में विभिन्न धर्मों का पालन होता है पर इस देश की धर्मनिरपेक्षता और संप्रभुता बरकरार है। वास्तव में ये सभी धर्म मिलकर देश में सद्भाव, संस्कृति, इतिहास और शांति बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जन गण मन

जन गण मन




जन गण मन अधिनायक जय हे 



भारत भाग्य विधाता 



पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा



द्राविड़ उत्कल बंग 



विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा 



उच्छल जलधि तरंग 



तव शुभ नामे जागे 



तव शुभ आशिष मागे 



गाहे तव जय गाथा 



जन गण मंगल दायक जय हे 



भारत भाग्य विधाता 



जय हे जय हे जय हे 



जय जय जय जय हे



भारत के राष्ट्रगान जन गण मन का अर्थ 




राष्ट्रगान का अर्थ इस प्रकार है:- “सभी लोगों के मस्तिष्क के शासक, कला तुम हो, भारत की किस्मत बनाने वाले [ये पंक्ति भारत के नागरिकों को समर्पित है, क्युकी लोकतंत्र में नागरिक ही वास्तविक स्वामी होता है] [ अगली पंक्तिया भारत देश की भूमि को नमन करते हुए है ] तुम्हारा नाम पंजाब, सिन्ध, गुजरात और मराठों के दिलों के साथ ही बंगाल, ओड़िसा, और द्रविड़ों को भी उत्तेजित करता है, इसकी गूँज विन्ध्य और हिमालय के पहाड़ों में सुनाई देती है, गंगा और जमुना के संगीत में मिलती है और भारतीय समुद्र की लहरों द्वारा गुणगान किया जाता है। वो तुम्हारे आर्शीवाद के लिये प्रार्थना करते है और तुम्हारी प्रशंसा के गीत गाते है। [अगली पंक्तिया देश के सैनिकों और किसानों को समर्पित है ] तुम ही समस्त प्राणियों को सुरक्षा एवं मंगल जीवन प्रदान करने वाले हो, और तुम ही भारत के वास्तिविक भाग्य विधाता हो जय हो जय हो जय हो तुम्हारी। आप सभी से मिलकर ये राष्ट्र बना है, अतः आप सबकी जय जय जय जय हे" 



भारत के राष्ट्रगान का इतिहास 



रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 'जन गन मन अधिनायक' को पहले बंगाली में लिखा गया था, और इसका हिन्दी संस्करण संविधान सभा द्वारा 24 जनवरी 1950 को स्वीकार किया गया। 1911 में टैगोर ने इस गीत और संगीत को रचा था और इसको पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कलकत्ता मीटिंग में 27 दिसंबर 1911 में गाया गया था। इस गीत के एक संस्करण का बंगाली से अंग्रेजी में अनुवादित किया गया और तब इसका संगीत मदनापल्लै में सजाया गया जो कि आंध्रप्रदेश के चित्तुर जिले में है। भारत के राष्ट गान को गाने के लिए निर्धारित समय ५२ सेकण्ड है, और इस समय सभी जन सावधान की मुद्रा में भारतीय ध्वज की तरफ उन्मुख होते है 


जानिए अपनी राशि के अनुसार किस रंग से खेलें होली

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